तुम सिर्फ तुम हो
तुम सिर्फ तुम हो
मैंने नहीं देखा है तुम्हारा चेहरा कभी चाँद की तरह
नहीं देखे हैं सागर, न झीलें तुम्हारी आँखों में
तुम्हारी चाल को भी संज्ञा न दे सका हिरनी जैसी
तुम्हारे सौन्दर्य को न बाँध सका किसी परिभाषा में
मैं मानता था, तुम सिर्फ तुम हो और कुछ नहीं
सिवाय प्रेम के तुम्हारे भीतर कुछ न जान सका मैं

