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AVINASH KUMAR

Romance

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AVINASH KUMAR

Romance

तुम पढ़ना मेरा मन

तुम पढ़ना मेरा मन

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तुम पढना मेरा मन,

जब सुबह वाली चाय

जरा उबल गई हो ज्यादा ,

और खाने का मेनू

हो गया हो रिपीट ,


तुम टोह लेना 

मेरे गीले मन की,

जब मिले तुम्हें

कोई तकिया नम,

और बिस्तर की चादर

सिलवटों वाली


तुम सुनना

मेरा मन,

जिस रोज

हो जाऊँ

हद से ज्यादा चुप

या फिर बतियाने लगूँ

जरूरत से ज्यादा 


तुम खंगालना 

मन मेरा

जब कंठ में 

उगे काँटों 

को दबाने लगूँ

पानी के ग्लास से 

या फिर तरल होती

आँखों को छुपाने लगूँ 

अखबार के पन्ने से


तुम थाह लेना

मन की मेरे

जब हफ्तों तक

न बदलूँ 

गुलदस्तों के फूल

चादरें और परदे

या महीनों नहीं 

गुनगुनाई हो 

कोई गजल


तुम ढूँढना जरूर

जब आंखों में  

लगा हुआ हो,

कई रोज बासी काजल

और बिंदी 

अपनी जगह से

हो आड़ी - तिरछी 


सुनो तुम पढ़ना 

मेरा मन 

किसी रोज.


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