प्रौढ़ावस्था में प्यार
प्रौढ़ावस्था में प्यार
झिझक उम्र के इस मोड़ पर
कि लोग क्या कहेंगे !
मन का चरखा हैं अनवरत
भावनाओं का रुई धुनेंगे
शब्दों के बीज ले शुद्ध नरम
धवल नरम रुई चुनेंगे
भावनाओं की आसमान में
हौसलों का परिंदा उड़ेंगे
झिझक उम्र के इस मोड़ पर
कि लोग क्या कहेंगे !
कर एकत्र इनको प्यार की गर्मी से
एक सुंदर चोला बुनेंगे
इसे पहना कर तुम्हें अपने प्रेम की
गर्मी का एहसास करेंगे
उम्र के इस मोड़ पर भी तुम्हें
संजा संवरा देखेंगे
तोड़ रस्मो- रिवाज को हम स्वच्छंद
प्रेम के कसीदे गढ़ेंगे
झिझक उम्र के इस मोड़ पर
कि लोग क्या कहेंगे !
जिम्मेदारी से थके कांधे पर
अपने हिलते सर रखेंगे
मेरी कांपते हाथ तुम्हारें कांपते हाथों के
उष्णता को महसूस करेंगे
उम्र की तमाम गुजरे अनुभव को
फिर दोनों सांझा करेंगे
झिझक उम्र के इस मोड़ पर
कि लोग क्या कहेंगे !
आंखें भी अब धुंधलाने लगी है
जीवन भी अब ढ़लेंगे
आंखों से ना सही उंगली की छुअन से
एक दूजे को महसूस करेंगे
हां! जकड़न इतनी मजबूत न होगी
मगर वो एहसास रहेंगे
हम साथ-साथ है यह जन्नतें- सुखन
बुढ़ापे की दहलीज रोकेंगे
झिझक उम्र के इस मोड़ पर
कि लोग क्या कहेंगे।
उम्र की लकीरों से भरी इन माथो को
चूमकर नवयौवन करेंगे
मैं शरमाऊं सिमटे होंठों से मुस्कुराऊं
चेहरे पे हया की लाली देखेंगे
मिलें तसल्ली हमारे दिल को
चलों ये सोच बदलेंगे
झिझक उम्र के इस मोड़ पर
कि लोग क्या कहेंगे।

