तुम क्यूँ छीन रहे हो वक्त मेरा
तुम क्यूँ छीन रहे हो वक्त मेरा
तुम क्यूँ छीन रहे हो वक्त मेरा
अभी तो घूँघट के उम्र बाकी है
रुकती है सॉंसें उस दरिया में पिघलकर
खो देती है तमाम चीजों को रोकर
बनी रहती है यादें मिलने के बावजूद
तुम फिर भी याद आते हो सोकर
मैं कैसे अधूरा रहूँ तुम्हारे बिना
अभी तो पीने के गम बाकी है
तुम क्यूँ.................. ।।
जब चढ़ेगा राग पे सुर यूँ ही मचलकर
आयेगी घर बारात खुशियों में झूमकर
तुम इस तरह अपनाओ न आगोश में यूँ ही
मुझे चाँद दिखेगा घूँघट में, झरोखें से ठहरकर
मैं मुड़ क्यूँ जाऊँ तेरी राहों से देख - देख
अभी तो मिलने की सरगम बाकी है
तुम क्यूँ......... ।।
मैं तड़पा हूँ साथ न होने पर, जैसे मीन पानी के बिन
अब तो बिखर गए हैं पन्ने तुम्हारी कहानी के बिन
इस तरह छुपकर प्रेम न करो मुझे अच्छा नहीं लगता
मैं तो उम्र भर हूँ ,यूँ ही तुम्हारी जवानी के बिन
छोड़ दो मुझे अब अपनी आँचल के साएँ से
अभी तो चाहत में डुबने का मर्म बाकी हैं
तुम क्यूँ.............।।

