तुम ऐसी ही मुझे भाती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो
छोड़ कर सब श्रंगार प्रिय
बन गले का हार प्रिय
झांक के मेरे नैनों में
जब मंद मंद मुस्काती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो।।
गृहस्थी में घिसी हथेली
चावल कंकड़ और पहेली
पसीने से भीगा चेहरा
और आंटें का धब्बा गहरा
आहट पर मेरे जलता चूल्हा
जब छोड़ के भागी आती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो।।
छोटा लोंग छोटी बिंदी
दोनों हांथ में दो दो चूड़ी
उलझे केशू अल्हड़ अंगड़ाई
रख कर बीच में गज की दूरी
रगड़ के पैरों से एड़ी को
जब पायल खनकाती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो।।
क्षण में शीतल क्षण में ज्वाला
आचार अनिश्चित रूप निराला
चिकोटी हंसी आंसू आलिंगन
शिकवे माफी वचन समर्पण
अधरों को कांधे पर रखकर
जब मधुर गीत कोई गाती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो।।
दो बार समझना बात का मतलब
नहीं समझना रात का मतलब
बाद बहस के तेरी करवट से
निकले शह और मात का मतलब
मेरे नटखट इशारों पर
जब पलकें झुका लजाती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो।।
चलती रहे ये प्रेम की बेला
रहे कभी ना कोई अकेला
सजनी तुम हो सरकार प्रिय
तुम ही प्रीत और प्यार प्रिय
बात बिछड़ने की छिड़ते ही
जब सीने में छुप जाती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो
तुम ऐसी ही मुझे भाती हो।।