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Afzal Hussain

Abstract

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Afzal Hussain

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हैप्पी होली

हैप्पी होली

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बैठ कन्हया बालकनी में करता है ठिठोली 

मार गुब्बारा राहगीरों को बोले हैप्पी होली 

भर पिचकारी पानी से सब पर फेंके जाए 

जो लगे निशाना सीधा झट नीचे छुप जाए 

बैठ यशोदा डाइनिंग हॉल में देख देख इतराए

सुन के किलकारी कान्हे की फूली न समाए 

तभी कहीं से गोपियों की बड़ी सी टोली आयी 

नीचे आजा डरपोक कान्हा राधिका चिल्लाई 

क्या खड़ा तू बालकनी से गली में जल बहाता है 

होली है त्यौहार रंगों का गुलाल से खेला जाता है 

सुनकर राधा की ललकार कनहैया दौड़ा दौड़ा आया 

गुंजिया खिलाई रंग उड़ाया सबको गले लगाया 

उसके बाद सारे मिलके अब्दुल के घर आए 

आजा अब्दुल होली खेलें सब मिलके चिल्लाए 

अब्दुल बोला नहीं नहीं अल्लाह होगा मेरा नाराज़ 

तुमने रंग लगाया जो मुझपे गिरेगी उसकी गाज 

कान्हा बोला रंग नहीं पसंद खुदा को 

तुझे ये बात किसने सिखाई है 

अरे सबसे बड़ा तो रंगरेज़ वही है 

जिसने ये रंगीन दुनिया बनाई है 

हंस के अब्दुल ने फिर गुलाल की पुड़िया खोली 

हर तरफ बस एक गूँज थी हैप्पी होली हैप्पी होली



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