टूटे हुए ख़्वाबों के निशान
टूटे हुए ख़्वाबों के निशान
बहते ही चले गए हम भावनाओं की लहर में,
पता ही न चला कब फंँसी नैया बीच भंवर में,
कभी सोचा ही नहीं था खुद के लिए भी है जीना,
जीवन का मकसद बन गया ख्वाहिशें पूरी करना,
ज़िन्दगी की दौड़ में दौड़ते दौड़ते दूर निकल गए,
पलट कर भी ना देखा कभी क्या पीछे छोड़ गए,
सागर की लहरों सी ज़िंदगी को कभी किनारा ना मिला,
वज़ूद ऐसा खोया कि खुद को खुद का सहारा ना मिला,
दिल के सीप में मोती से सपने आज भी वहीं बंद पड़े हैं,
वक़्त की लहरों में बहकर हम जाने कहांँ आकर खड़े हैं,
पल-पल भावनाओं में बहती रही ज़िन्दगी की दास्तान,
बिखरते रहे टूटते रहे और खुद से ही होते रहे अनजान,
आज मुड़कर देखा पीछे तो बदल चुका था ये जहान,
धुंँधले से दिख रहे थे, कुछ टूटे हुए ख़्वाबों के निशान,
मैंने रुक कर समेटना चाहा ख़्वाबों के उन टुकड़ों को,
तभी लहर का एक झोंका आया, बहा ले गया उनको,
सच है जो किस्मत में नहीं हाथ आकर चला जाता है,
वक़्त ज़िन्दगी से, उसके निशान तक को मिटा देता है,
वक़्त ने तो दिया वक़्त ख़्वाबों को संजोकर रखने का,
मैंने ही मौका छोड़ दिया, खुद के लिए कुछ करने का,
आज ज़िन्दगी के इस मोड़ पे, हूँ मैं तन्हा खाली हाथ,
जिनके लिए ताउम्र दौड़ा, आज वहीं नहीं हैं मेरे साथ।