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कुमार संदीप

Tragedy

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कुमार संदीप

Tragedy

ठिठुरती ठंड

ठिठुरती ठंड

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दीनानाथ हर दिन

झेलता है कठिनाई

पर बेरहम मौसम भी

अपना प्रकोप दिखाने से

नहीं चूकती है,

गरीबी न जाने कितने रंग

दिखाती है,

ठिठुरती ठंड में भी

हर दिन खेतों में 

जाना निश्चित है,

आखिर मुन्ने की पढ़ाई

और मुनिया की शादी जो

करनी है..

सपने देखना शायद दीनानाथ के

नसीब में ही नहीं,

दो वक्त की रोटी

के लिए कंपकपाती ठंड

में जाता है खेतों में,

ईश्वर की कृपा दृष्टी भी नहीं

पड़ती है दीन दुखियों पर,

आखिर इतना दुख क्यूं हैं

इनके जीवन में?

हे प्रभु जीवन देना कभी जीवन

तो गरीबी न देना तोहफे में किसी को,

बड़ी बेरहम होती है गरीबी

घूंट घूंटकर जीने को

मजबूर कर देती है,

हाँ रो रोकर जीने

को मजबूर कर देती है।


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