तरबूज (दोहा)
तरबूज (दोहा)
लाल-लाल तरबूज को, देख सभी ललचाय।
बड़ा-बड़ा आकार से, सबका मन भरमाय।।
खूब रसीला फल सदा, गर्मी करता दूर।
छोटे-छोटे बीज से, मगज रहें भरपूर।।
नदी किनारे अति फले, रहे पौष्टिक खूब।
पीछे इसका जूस भी, ठंडा यह पनडूब।।
दिए तरबूज ताजगी, रहे अमृत सम तुल्य।
खूब ग्रीष्म में पीजिए, रहता यही अमूल्य।।
