तराज़ू
तराज़ू


तराज़ू जैसी जिंदगी हमारी
ऊंच नीच का खेला है, उमर सारी।
उसका पलड़ा हल्का, है जरूरत जिसकी
जो पूरी करे जरूरत, उसका पलड़ा भारी।
तराज़ू का स्वभाव भी बदले बारी बारी
बच्चों को जरूरत आज, कल हो सकती मां बाप की लाचारी।
दरबान की गुंडई है जगजाहिर
छोड़ा नहीं मौका, जिसको मिली धरोहर।
मुझे काम तुझसे पड़ा, मजबूरी थी मेरी
फायदा तूने खूब उठाया, समझ उसे कमजोरी।
वक्त बदलते वक्त नहीं लगेगा
आज राजा तू, कल दाने दाने को तरसेगा।
सबको बराबर समझ, बनो परोपकारी
आज जरूरत उसकी, कल हो सकती तेरी बारी।
सही गलत का फैसला यहीं होना है
क्या लेकर आया तू, जो लेकर जाना है।