तपता बदन
तपता बदन
आज फिर इतना ताप ?
आजकल रोज़ ही चढ़ता,
उसके बदन का ताप ...
चाहे जितना भी नाप।
अजीब सी एक तपन,
बढ़ी दिल की धड़कन,
पसीने से बेहाल बदन,
साँसों की अजीब चुभन।
वो समझ नहीं पाया,
उसका तपता बदन,
जब छुये निकले आग,
अधरों से रहा वो भाँप।
जब फूल रहा था सूख।
उसे लगा होगी कोई भूख,
वो मुँह फेर चला गया,
ताप और बढ़ता गया,
कोई दवा काम ना आई,
तपते बदन ने जान सुखाई,
जब समझा तपन का शोर,
तब तक हो गई भोर।
फिर क्या दिन और क्या रात,
बस चारों ओर प्रेम की बरसात,
वासना में लिप्त तपता बदन,
ताप उतर रहा हुआ जब नग्न।।

