तपस्या
तपस्या
हर ज़िंदगी एक जटिल,कठिन तपस्या
सांसों के स्पंदन से जुड़ी
कभी अनुपम पूनम सी,कभी अमावस्या
जन्म से मृत्यु तक की वह कड़ी
तपस्या भंग करने मोहिनियां घेरें कितनी ही
राह का बनें रोड़ा- हिला दे नींव,जो खड़ी की
हमने अपने खून को पानी बना कर
हर कोशिश की,अंधेरे न हों हावी मुझ पर
गुफ़ा हो गहरी या हो दुनिया का कोना कोई
कौन भला भाग पाया ख़ुद से
कौन दे पाया तिलांजलि रंगरलियों को
तपस्या हो जाती भंग पल पल भर में
जूझता रहे इंसान ज़िंदगी भर अपनी कमियों से
अपनी खामियों, दुविधाओं, सवालों से
मजबूर कभी, मगरूर कभी
बेबस कभी, हार जाए ज़िंदगी की चालों से
मौन चिन्तन कभी,बहस अपनी ही नाकामियों से
तपस्या हर ज़िंदगी-
सफल असफल नही-हार जीत नहीं!
गर हम अहसान फ़रामोश नहीं
गर ज़िंदगी की अहमियत से अनजान नहीं
तपस्या अपनी हुई पूरी-
और कोई नाप तोल नहीं।