तमन्ना आकाश छूने की
तमन्ना आकाश छूने की
तेरे शहर का दस्तूर बड़ा निराला है |
जो कुसूरवार हैं उन्हीं का बोलबाला है।
अब किस पे भरोसा करें, क्या समझें,
जो सफ़ेदपोश हैं उन्हीं का मुहँ काला है।
फिर न आए इस ओर कोई सपना नया,
बड़ी मुश्किल से हम ने दिल सम्भाला है।
इतना मायूस न हो सब्र से कुछ काम ले,
बाद अँधेरे के ही आता नया उजाला है।
क्यूं परेशां हो, पशेमां हो, क्यूं ये तंगदिली,
वही मस्जिद, वही गिरजा, वही शिवाला है।
गर तमन्ना है बुलंद आकाश छूने की,
न चलो ऐसे रस्ते पे जो देखा-भाला है।।
