तमगों की तमन्ना नहीं रखता कभी फौजी
तमगों की तमन्ना नहीं रखता कभी फौजी
तमगों की तमन्ना , नहीं रखता कभी फ़ौजी।
फ़ौजी के जहन में, कभी सियासत नहीं होती।।
फ़ौजी तो एहले वतन का , रहबर है दोस्तो।
फ़ौजी की अपनी कोई रियासत नहीं होती।।
फ़ौजी तो वही है, जो खुद को जान गया है।
आबरू-ए-वतन को पहचान गया है।।
जो हक़ नहीं सिर्फ , अपने फ़र्ज़ को जानता है।
लहू का हर कतरा, वतन की अमानत मानता है।
मज़हब भी, किसी फ़ौजी का बस फ़र्ज़ होता है।
वो जानता है दूध का भी, क़र्ज़ होता है।।
फ़ौजी कभी गद्दार-ए-वतन हो नहीं सकता।
गद्दार-ए-वतन है, वो फौजी हो नहीं सकता।।
जीतेजी वो कोम का, परचम बुलंद रखता है।
वक्त आने पर इसके लिए , तन भी बिछा देता है।
दर्ज़ा-बा-दर्ज़ा जो ,स्वयं को तरासता है।
उत्कृष्ट कर दिखाने का , लम्हा बस तलासता है।।
हर मुसीबत में ,अडिग चट्टान है फ़ौजी।
इतिहास में किसी भी मुल्क की , पहचान है फ़ौजी।
वतन परस्ती से बड़ी ,कोई इबादत नहीं होती।
बिना फ़ौजी किसी भी मुल्क की , हिफाज़त नहीं होती।
शहीद होने पर उसकी मृत्यु भी "उल्लास" देती है।
नई पीढ़ी को उसकी रूह भी , प्रकाश देती है।।
जिस मां के आंचल के तले, पलकर बड़ा हुआ 'सुख'।
उस मां के दूध से कभी, बगावत नहीं होती।।
