तकली गलाकर तीर गढ़ लिए हैं
तकली गलाकर तीर गढ़ लिए हैं
तू खड़ा हो, ले धनुष, खींच
प्रत्यंचा पर रखकर वाण को।
लक्ष्य - भेदन के लिए, ध्यानस्थ हो,
दृष्टि टिका, संधान को।
कुछ वाण होंगे जो गिरेंगे,
लक्ष्य से कहीं दूर जाकर।
मत कर, तू उनकी फिकर,
धनुष उठा अभ्यास कर।
अभ्यास से तुम साध सकते
हो, धरती, हवा औ' गगन को।
अभ्यास से ही बांध सकते हो,
उदधि, गिरि, नदिया, अगन को।
तुम धनुर्धर हो, परसुराम, द्रोण,
भीष्म, अर्जुन की हो संतान ।
तीक्ष्ण कर वाणों को अपने
जग को बता अपनी पहचान।
अहिंसा की तकली गलाकर
तीर हमने गढ़ लिए हैं।
त्रिपिटक सजाकर रख दिये
हल्दीघाटी को हमने पढ़ लिए हैं।
