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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Abstract

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

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तिश् -नगी

तिश् -नगी

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 जिन्दगी का अदब और कायदा उमर के साथ ढल कर हो गया बे - कायदा ||

मैं कहाँ चाह्ता था कि तुमसे बे अदबी करूं इसमे तेरा फायदा ना मिरा फायदा ||

बात पुरुषों के पुरुषत्व पर आ के रुकी बात पुरुषों के पुरुषत्व पर आ के रुकी मर्द भिड्ने लगे आशिकी पर सभी ||

मर्द भिड्ने लगे आशिकी पर सभी ||

जिन्दगि का अदब और कायदा उमर के साथ ढल कर हो गया बे - कायदा ||

तिश-नगी बढ गई तिशना गर हो गया रूह मेरी जज्बातों को लेके तरसने लगी ||

जाऊंगा एक दिन दूर तुझसे सखी जान जाऊँ ये पहेले के प्यार है या नही 

जिन्दगी का अदब और कायदा उमर के साथ ढल कर हो गया बे - कायदा।



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