तिरंगे का नशा
तिरंगे का नशा
वो नशा ना कर जो शाम को पिये और सुबह को उतर जाए।
नशा शहीदों की तरह करो, जिससे जिंदगी संवर जाये ।।
ये इस रंग का नशा हैं, जो हर वक़्त जुबां पे आये ।।
जीते जी दौड़े मेरी रगों में, मरने के बाद दुआ में आये ॥
नशा हम पर इस कदर चढ़ा , की नशे के हम गुलाम हो गये।
हम नादान थे नासमझ थे, जिससे हम बदनाम हो गये ।।
नशा देश भक्ति का था, जिससे हम सरेआम हो गये।
हमें शौक न था जताने का, मगर आज हम खुलेआम हो गये ।।
चलाई है लहर मोहब्बत की, गर ये चलती है तो चलने दो।
चराग़ आँधियों में जल रहे हैं, गर जलते है तो जलने दो।।
तैर के दरिया पार कर लेंगे, गर लहरें उठती है तो उठने दो।
"स्वरूप" से कुछ लोग जला करते हैं, गर जलते है तो जलने दो।।