Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Mahendra Kumar Pradhan

Abstract

4  

Mahendra Kumar Pradhan

Abstract

तीसरे विश्वयुद्ध की दस्तक

तीसरे विश्वयुद्ध की दस्तक

2 mins
22.9K


सुंदर मनोहर धरा आज किस हाल में विक्षिप्त पड़ा

सौरमंडल से किसने धरा को निजी कक्षपथ से दूर तड़ा

लगता कोई रेगिस्तान है नमी नहीं जमीं बंजर दिखता है

धरा की कैसी अवस्थान है खौफ़नाक मंजर दिखता है


उड़ रहा कहीं पीला झंडा सूर्य सा तेज और ऊर्जावान

तो कहीं हरा झंडा करता समृद्धि और उत्साह का गान

पर वो लाल पताका मध्य में ज्वालामुखी सा धधकता है

वीरता व अहंकार में चूर प्रतिशोध की आग में जलता है


कुरुक्षेत्र की रणभूमिआज भी कांपती है उस नरसंहार से

गांडीव गदासुदर्शन और भाले तलवारों की ललकार से

रक्त की नदियों में लाशें तैरीं जहां मानवता हुई शर्मशार

युद्ध जीतनेवाला भी अंत में अपने सबकुछ गए थे हार


धर्मराज का अर्धसत्य और अभिमन्यु के पीड़ित चित्कार

गुंज गुंज कर कहते हैं युद्ध है सबसे कुरूप व कदाकार

परिणाम की बात छोड़ो युद्ध की विचार भी घिनौनी है

तन मन धन से हर जन जीवन को सिर्फ हानि ही हानि है


निजी स्वार्थ और बैरी से धरती को क्यों करने लहूलुहान

त्याग परहित तथा प्रकृति प्रीत अग्रसर हो रहा इन्सान

अगर ठहरा तीसरा विश्वयुद्ध तो कहां बचेगा इनसान ?

मिट जायेगा विश्व ब्रह्माण्ड से धरती का नामोनिशान


ध्वस्त हो जाएंगे सारे दुर्ग क्षेपणास्त्र हथियार महान

राख हो जाएंगे सारे ज्ञान विज्ञान और गर्व अभिमान

युद्ध उपरांत शांति के अरमान तो है दिवास्वप्न समान

शांति से ही शांति मिलते हैं यही है संतों का सतज्ञान।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract