तहज़ीब के बीज
तहज़ीब के बीज
क्यों बैठे हो दर्द देने वाले लम्हों को यूं संजोकर
सांस न लेने देंगे जो रखोगे गले में इन्हें पिरोकर
अपनी फिक्र का बोझ तू ऊपर वाले को सौंप दे
कब तक जीएगा ऐसे बोझ मुश्किलों का ढोकर
ख़ुश होने के भी हजारों लम्हे दिए हैं ज़िन्दगी ने
याद उन्हें कर लो गुज़रे वक्त के सागर में खोकर
सुख और दुःख अपने वक्त पर ज़िन्दगी में आते
फिर क्यों रखते नयनों को आंसुओं से भिगोकर
तज़ुर्बा यूँ ही नहीं करवाती कभी ज़िन्दगी हमारी
हालात की ना खाओगे जब तक दो चार ठोकर
इरादा रख ले खुद को तू पाक साफ बनाने का
सुकून मिलेगा तुझे मैल अपने कर्मों का धोकर
बैठी हैं खुशियाँ हजारों तेरे ही पहलू में छिपकर
ना बिता अपना कीमती वक्त तन्हाई में यूँ रोकर
जहन्नुम को जन्नत बनाना काम नहीं है मुश्किल
हर रवायत बदल डाल बीज तहज़ीब के बोकर!