थोड़ा चश्मा बदल के तो देखो
थोड़ा चश्मा बदल के तो देखो
सोच रही थी नहीं कहूंगी
सारे इल्जाम में सह लूंगी।
मगर फिर सोचा जब जिंदगी
पूरी मैंने दे दी है इस घर को ।
तो क्या मेरा इतना भी हक नहीं कि
मैं जी लूँथोड़ा अपने मन से।
क्यों हर समय एक ही चश्मे से
नापते हो हमेशा जिंदगी।
अरे कभी चश्मा बदल के तो देखो।
ना चीनी कम है ना नमक ज्यादा।
जिंदगी हमारी खुशी भरी देखो।
ना छिद्र देखो कभी तो उसमें अच्छाई देखो
ना चीनी कम ना जब नमक है ज्यादा।
समझ नहीं आता कि कहूं में क्या तुमसे
सारी शिकायते तुमको है मुझसे।
अगर मैं थोड़ी गंभीर ना रही।
अगर मैं थोड़ी मनमौजी होकर जी ली।
अगर मेरी हेल्थ थोड़ी ज्यादा हो गयी।
तो क्या वे सारी खूबियों पर भारी है।
चश्मा बदल के तो देखो
कभी हम भी तुमको अच्छे नजर आने लगेंगे।
नहीं कहना चाहती थी मैं तुमको कुछ ज्यादा।
ना चीनी कम है ना नमक ज्यादा
जिंदगी में क्यों मिठास नहीं है ज्यादा।
ना तुम बदले 25 पर भी,
ना तुम बदल सकते हो 70 पर,
मैं नहीं बदल पाऊंगा,
कह कर छुटकारा पा लेते हो सारी बातों से।
क्या तुमको ऐसा लगता है,
हमेशा खाली ना बदलना तुम्हारी मजबूरी है
कोशिश तो हमने भी बहुत की है।
तुम्हारे अनुरूप होने की।
मगर तुमको हमारी अनुरूपता पसंद ना आई।
हर मुसीबत में कंधे से कंधा मिला
जोड़कर साथ निभाया है हमने।
फिर भी जो तुम हमको नजरअंदाज करो तो।
इससे बड़ी कम नसीबी ही क्या है हमारी।
जब 70 पर तुम ना बदल सकते हो तो
65 पर मुझसे बदलने की क्यों उम्मीद करते हो ।
क्यों नहीं हम जैसे हैं, वैसे चलते हो।
थोड़ा गुस्सा कम और
प्यार ज्यादा करोगे तो
क्या कम पड़ जाएगा।
ना चीनी कम ना नमक है ज्यादा
थोड़ा चश्मा बदलो तो सब है बराबर।