था सफ़र सुहाना वो
था सफ़र सुहाना वो


था सफ़र सुहाना वो
मुझे देख रही थी मनचली।
थी कोई एक नूर जहां की
या कोई थी पुष्प कली।।
कहने की कुछ चाहत थी
पर जिह्वा न खोल सकी।
नज़रों से ही नज़र मिला के
दिल की बात को बोल गई।।
कहने को कुछ जी चाहा
पर मैं भी कुछ न बोल सका।
साहस मैंने ख़ूब किया
पर राज़ ए दिल न खोल सका।।