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shivendra mishra 'आकाश'

Abstract Others

4.0  

shivendra mishra 'आकाश'

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"तेरा मेरा होकर हम होना"

"तेरा मेरा होकर हम होना"

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तेरे इश्क़ की जो लगन लगी रे, 

मैं दीवानी सी हो गई घनश्याम,

आकर रुक जाते है मोती पलकों पे,

जैसे ठहर सी जाती है नदी घाटों पे,

मेरा मन तू समझ या न समझ प्यारे

फिर भी इश्क़ सहम जाता है होंठों पे,

मैंने तेरा पता पूछा नदियों की धार से

उठती हुई छोटी छोटी तरंगें मुझे बताती हैं,


बहुत सजल आँखों से इंगित होता है प्रेम,

अपने वास्तविक विकारों और विचारों का,

जब एक दूजे से विश्वास का मेल होता है,

जब नर्म और कठोर हृदय का विलय होता है,

आभा की लालिमा में फिर भावनाओं का,

श्रृंगार में जब बहर का उपयोग होता है,


दिल का दिल से ही जब बैर होता है,

लेकिन हक़ीकत में वही प्यार होता हैं,

तेरे जज्बातों का लौट आना नई उमंग से,

बिन बिखरे सुमन का "तेरा मेरा" होकर,

''हम'' से बातों का शुरू होना होता हैं,

वक्ष पर अपनी सांसो की थकान मिटाना,


प्यार का बिन बोले ख़ामोशी में जताना,

साथ न होकर भी उसका अहसास होता,

एक दूजे को जीना और भी कठिन होता है,

हालातों में जब जमाने का नूर होता है।

तनहाइयों में खुआवि आलम का मंजर,

अश्कों में बहता है वही प्रेम सौन्दर्य होता हैं।।



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