तेरा ईश्वर
तेरा ईश्वर
कुछ रिक्शे से ही ढ़ोते पूरे एक घर को,
क्षुधा से मुक्ति नहीं मिलती क्षण भर को
तेरा ईश्वर पर्वत को उंगली पे उठा लेता है
इन भूखों को रोटी वो क्यूँ न खिला देता है।
कुछ कुत्तों को बिस्कुट खिलाते दुलार से
भूखों से घृणा दुत्कारते फटकार से
वो भक्तों के आगे सागर को सुखा देता है
बुद्धि कलंकित है क्यूँ ना हिला देता है।
पत्थर सी दुनिया में शीशे का लेके दिल
ख्वाबों की तामील यहाँ होती बड़ी मुश्किल
तेरा ईश्वर ठोकर से पत्थर को जिला देता है
इन आँखों के सपनों को क्यों न खिला देता है।
