तारों की साक्षी में
तारों की साक्षी में


मुझे कई बातें कहनी हैं
तारों को साक्षी रखकर
चाँद से !
बातें. हाँ, कई जरूरी बातें
क्योंकि कल से तो
चाँद का चेहरा
विस्मृत हो जायेगा !
और फिर सम्बन्ध टूट जायेगा
मेरा और चाँद का !
पर डर लगता है
चाँद को जगाने की कोशिश
करते ही हाथ काँपता है !
गला रुंध जाता है
जब चाँद को पुकारने की
इच्छा होती है !
शायद
अब अंधकार की छूरी
गला काट देगी मेरा !
पर अब बिना शब्दों के
क्या कहूँ
क्या कहा !
चाँद फिर निकलेगा,
तब तक तो समय
चला जायेगा
कूद फाँद कर
शून्य वनों में विचरने !
फिर मैं क्या करूँ
क्या ढलते सूरज के साथ ढलूँ
सुबह होने तक।