STORYMIRROR

हरीश कंडवाल "मनखी "

Tragedy

4  

हरीश कंडवाल "मनखी "

Tragedy

ताला चाभी

ताला चाभी

1 min
392


चार दिवारें अपने वजूद पर टिकी हैं

छत की पटालें,दारें नीचे झुकी हैं

पलायन की दास्तां बया करती तस्वीर

ऐसी पुरखो की विरासत की तकदीर।


दीवार पर लगे पत्थर शर्म से मौन है

घर का कण कण बचपन, जवानी

अधेड़ औऱ बुढापा देखने को बेचैन है

कोई आये, आँगन बिछाये अपने नैन है।


घर की कुंडी पर लगा है जंग लगा ताला 

किसी के आने की इतंजार में फेर रहा  माला

अक्सर आते जाते राहगीरों से वह करता एक सवाल

कब तक मकड़ियाँ बुनती रहेंगी मुझ पर जाल।


उजड़े टूटे घर पर लगा वह ताला पूछता

है कोई ऐसा हथौड़ा जो मानव के लोभ को तोड़ दे 

छोड़ कर चले गए घर, लटका गए मुझे दरवाजे पर

ऐसे मनखियों के दिल के तालों को प्रेम से खोल दे।


उजड़ते घर कोस रहे हैं उन ताल लगाने वालो को

जो वर्षो से उन्हें खोलने की जहमत नहीं उठा सके

घर आकर टूटे गिरते मकानों को नही बना सके।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy