स्वर्ग एक परिकल्पना
स्वर्ग एक परिकल्पना
यह कैसी परिकल्पना जो करने में ही मन खुश हो जाता।
स्वर्ग नरक एक परिकल्पना है।
जिसको हमने अपने मन से बनाया है।
स्वर्ग सुंदर अति सुंदर बताया है।
सारी सुविधाओं से सब खुश करने के लिए जिंदगी में
कोई दुख ही दुख ना पाने के लिए करते हैं हम स्वर्ग की कामना।
जिसको हमने कभी देखा नहीं इसके बारे में हमने कभी जाना नहीं।
मगर यह कल्पना ही इतनी मीठी है
जो सबको पाप करने से रोक देती है।
सब यही बोलते हैं पाप पुण्य का खेल है यह।
अगर पाप करोगे तो नर्क में जाओगे।
और पुण्य करोगे तो स्वर्ग में जाओगे।
इस परिकल्पना में राचते हुए हम पाप नहीं पुण्य ही करते हैं।
अगर पाप करते हैं तो मन के अंदर एक अपराध भाव रखते हैं।
और हमेशा उस सिद्धांत को याद करते हैं।
कि पाप नहीं पुण्य करो कर्मों का फल यही मिलेगा।
मेरे हिसाब से तो स्वर्ग नरक इसी जमीन पर है।
क्यों कुछ लोग बहुत दुख पाते नर्क जैसी बस्ती में रहते
जिंदगी और व्यवहार भी वैसे ही करते हैं।
क्यों कुछ लोग स्वर्ग जैसी खुशियां में राचते और जिंदगी की
खुशियां पाते और व्यवहार भी वैसा सुंदर ही रखते हैं।
इसीलिए मेरा कहना है स्वर्ग से सुंदर अपना संसार बनाओ।
और उस स्वर्ग में खुद जी जाओ।
जरूरी नहीं है कि पैसे से ही सारी खुशियां खरीदी जाए।
थोड़ी संतुष्टि प्रेम भाव अभाव में भी एक दूसरे के साथ में खड़े रहने का जज्बा।
खुश रहने का जज्बा।
आपको स्वर्ग से सुंदर से मनोहर मन और जीवन देता है।
और पृथ्वी पर ही स्वर्ग नजर आता है।
जो अब एक परिकल्पना नहीं वास्तविकता नजर आता है।
तो आओ आज हम इस परिकल्पना को साकार करें और
अपनी जिंदगी को स्वर्ग से सुंदर अपनी धरती पर ही बना लें।
स्वर्ग के दर्शन यही पा लें।
मरने के बाद तो क्या मिलेगा पता नहीं।
मगर जीते जी स्वर्ग के दर्शन तो पा लें।
अपने जीवन को प्यार और संतुष्टि से सजा ले।
