स्वप्नों का शिलान्यास
स्वप्नों का शिलान्यास
पाॅंचसौ वर्ष की कठीन परिक्षा,अब जाकर उत्तीर्ण हुआ
राम नाम की द्वन्द ये कैसी, सपना अब साकार हुआ
मुगलों ने जो जख्म दिये, मरहम जाकर अब लगी
मर्यादा की जो सीमा लांघी, टूटने की ओ आस जगी
राम नाम के नाम पर, भव्य मंदिर की जो थी अभिलाषा
पूर्ण हुई अब जाकर के, धर्म क्रान्ती के मन की आशा
आनेवाली है वो शुभ घड़ी, शीला न्यास की पूजन का
मंदिर ऐसी भव्य बने की, तूलना न हो किसी दूजे का
लम्बी लड़ाई जीती हमने, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभू की
अब जाकर संतोष मिलेगा, पूरानी कठीन परिश्रम की
राम का कोई बैरी न जग में, हम सब आशा करते रहें
बिना थके और बिना रूके, इस न्याय के लिए लड़ते रहें
हे राम शान्ति दो सबको, विश्व का अब कल्याण करो
राम राज्य की परिकल्पना के, स्वप्नों को साकार करो
आदर भाव सहित प्रभू तेरे, चरणों में मैं प्रणाम करूं
जब तक जीवन है हम सबका, दुख व्याधा से न डरूं।