पश्चाताप
पश्चाताप
ये कैसी है अपनी दुविधाएं, कैसा मर्म भरा संदेश है
मैं हूं कारण शायद इसकी, न कोई अब अंदेश है
स्वर की गरिमा और प्रवृत्ति, शायद इसका अभाव था
बचपन की उन यादों का,शायद थोड़ा तो प्रभाव था
भूल हुई छोटी सी लेकिन,परिणाम बहुत ही कष्टकर है
मन में ये कैसी पीड़ा है, कोई कार्य नही अब रूचिकर है
पश्चाताप की ज्वाला ऐसी, किंकर्तव्यविमूढ़ का द्योतक है
शान्ति न मिल रही अब तो मुझको, दर्द बड़ा ही घातक है
क्षमा याचना खुद से करता, शायद कुछ शान्ति आये
मन की ताप की ज्वाला से, थोड़ा तो तीव्रता जाये
आत्मचिंतन करने पर जाना,दोष नहीं किसी का इसमें
शायद ये प्रारब्ध की परिणिती, भूल हुई है ये जिसमें
मेरी ये अब प्रार्थना सिर्फ, मन को न व्यथित करो तुम
माया का ये खेल हीं समझो, खुद को ना अधीर करो तुम।