स्वामी दत्तात्रेय जी
स्वामी दत्तात्रेय जी
कौशिक ब्राह्मण की पत्नी के डर से,
इंतजार सूर्यदेव जब, उदय होने का करते हैंं
माता अनुसुया के सती प्रभाव से,
मृत कौशिक जी स्वस्थ-जीवित हो जाते हैं।।
प्रसन्न, देवता होते अनुसुया मात से
वर मांगने को उनसे कहते हैं
ब्रह्म-विष्णु-शिव पुत्र हो
वर, तब सती अनुसुया को देते हैं।।
ब्रह्मा के अंश से जन्मे चंद्रमा
विष्णु से, दत्तात्रेय जी प्रकट होते हैं
शिव से आए दुर्वासा ऋषि जी
जिन्हे त्रिगुणात्मक शक्ति कहते हैं।।
योगस्थ रहते दत्तात्रेय जी हमेशा
प्रदान, शीतलता चन्द्रमा करते हैं
सदा दुर्वासा जी का प्रभाव अलग हैं
वो क्रोध में हरदम रहते हैं।।
मात माया के साथ विराजे
दत्तात्रेय जी प्रकृति में संतुलन रखते हैं
रक्षा-पालन करते जहां का
संहार, दुष्ट-दैत्यों का करते हैं।।
कार्तवीर्य को राज-धन-ऐश्वर्य देते
भुजाएं हजार भी उसको देते हैं
अबाध गति से विचरण करता रहता जो
परशुराम रूप में, उसके प्राण हरण फिर करते हैं।।
महर्षि अलर्क एक राजा अनोखे
ग्रहण, माता मदालसा से शिक्षा करते हैं
हो भोग-दुख से आतुर वो जब
शरणार्थी, दत्तात्रेय के बनते हैं।।
मिथ्या ज्ञान व मिथ्या सुख से
सभी बंधनों से दत्तात्रेय जी मुक्त उन्हे करते हैं
ज्ञान, मोक्ष का देते अर्लक को
आत्मा-परमात्मा की शिक्षा देते हैं।।
