सूर्य स्तुति
सूर्य स्तुति
ले सप्तवर्णी अश्व के रथ,
तुम सतत गतिमान हो।
सृष्टि के हो तुम प्राण-रूप,
तुम स्वयं दिनमान हो।।
हो तम जगत का हरण करते
दे आलोक दिव्य ही।
है सरस जीवन लोक रचता
जगत में सब भव्य ही।
कलुष मन के सबके मिटा दो
लुटा आशीष अपनी।
सदआचरण के भाव ही हो
जिससे सुधरे करनी।।
हे सूर्य !कर अपनी कृपा से
जीवन हम सभी का।
है बिन कृपा स्वामी तुम्हारी
सब साथ भी जीवन का फीका।।