सूरज को जगाओ
सूरज को जगाओ
दुनिया ने दाग लगाया,
इल्ज़ाम फिर मुझ पर ही आया।
तंग, छोटे कपड़ें पहन निकलती होगी,
लड़को को आमंत्रण,ये ही देती होगी।
उठती उंगलियाँ, घूरती निगाहें,
बाधित करती, मेरी राहें।
पूछे इनसे कोई, ये कथित समाज के ठेकेदार,
नवजात से लेकर, प्रौढ़ तक,
क्या रख पाओगे कपड़ों का हिसाब ?
अब बहुत हुआ..इस गंदी सोच को दूर भगाओ,
सब हमसे ही क्यों कहते,
अब तुम अपने अंतर्मन के सूरज को जगाओ।