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KAVY KUSUM SAHITYA

Abstract

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KAVY KUSUM SAHITYA

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सूरज और बसंत

सूरज और बसंत

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अमावस का घनघोर अँधेरा है पूर्णिमा के

चाँद की चांदनी से रौशन दुनिआ है      

अमावस हो या पूनम तारों

सितारों से सजा सवरा जहाँ है।     


भीतर से बहार निकल जगत खुशरंग है

चाँद सितारों से रौशन खूबसूरत जहाँ है !        

प्रातः प्रभात के प्रखर प्रभाकर के प्रवाह कि प्रथम लाली     

रक्त सी किरणों में वर्तमान आज ठहर गया है         


अतीत के अपने ही सफर का साक्षी सहम सा गया है   

कभी अट्टहास अभिमान अहंकार के गुरजे

लम्हों लम्हों को अपने वर्तमान की नज़रों से देखता

बल्लभ पराक्रम का सरदार आज के युग कि

दृष्टि दृष्टिकोण उद्देश्य कि व्यवहार !            


 उमंग, उत्साह ,जहाँ का जोश संग लाई हैं किरणे चाहतों की चाहत

हाला प्याला मधुशाला लाई है नव शौर्य सूर्य की किरणे !       

तेरी चाह कि राह संग लाई है किरणें भीतर से

बाहर निकल जगत खुश रंग का सन्देश है किरणें !                


ब्रम्ह मुहूर्त की बेला में मंदिर, मस्जिद,चर्च, गुरुद्वारों ने

मानव मानवता की अलख जगाई   

कोयल की कू कू पंछी के कोलाहल नदियां का कलरव

झरनों की झर झर स्वर सागर से मिल जाने की चाहत     


शांत सरोवर झीलों का गागर में सागर बन जाने की चाहत

भीतर से बहार निकल देख जगत का खुशनुमा खुश रंग !        

कभी चिलचिलाती गर्मी कभी ठंठ की ठिठुरन           

कभी तेज हवाओं की शान, कभी शांत कभी वर्षा, तूफ़ान    


हर हाल में इंसान के चमन में बहार इंसान में खुदा भगवान्

भीतर से बहार निकल जगत खुशरंग है

प्रकृति की प्रबृति का संग अंग है !             

हर डाली पे फूल खिले भवरों का गुंजन गान          


कलियों को भी इंतज़ार भौरों का पाए प्यार             

माली चुन चुन कर फूलों को प्यार यार के दीदार को तैयार     

महत्व की महानता का विजय विजेता का अभिमान

माला पिरोता हर फूल धन धान्य भाग्य भाग्यवान       


भीतर से बाहर निकल जगत खुश रंग कली फूल की किस्मत के संग !


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