सुपर पावर
सुपर पावर
हे ईश्वर! अगर मिल जाती मुझे
कोई सुपर पावर
तो मैं तुम्हारी इस खूबसूरत धरती से
अंवाछित चीजों को हटाती
जुर्म का नामोनिशान मिटाती
नफरत की जहरीली
परत को हटाती
ईष्या द्वेष और अहंकार को
माचिस की तीली से आग लगाती
मैं चुराती हंसते हुये चेहरों से मुसकान
हर कोने में फूलों जैसे बिखराती
मैं मांग लाती प्रेम करने वालों से
थोडा़ सा प्रेम का अमृत
एक -एक घूंट मैं सबको पिलाती
टांग आती धरती के आखिरी छोर पर
नीबूं मिर्च एक पोटली में बांध
अपनी खुशियों को किसी की
बुरी नजर से बचाती
अपनी सुपर पावर से करती जादू
बिछडे़ हुओं को फिर से मिलाती
तुने बनाई थी दुनिया जैसी
फिर से मैं इसको वैसी बनाती।
