सुनो नारियों
सुनो नारियों
सुनो! नारियों
पुरूषों ने जन्म से नहीं सीखा
खुद को सत्ताधारी समझ
तुम पर सत्ता करना
वो तो तुम्हारी ही छत्रछाया में पला है
कहीं ना कहीं तुमने ही रोपा है
उसके मन में ये घातक बीज
जिस दिन तुम सब एक हो जाओगी
नारी सम्मान की घुटी बचपन से पिलाओगी
उस दिन वो तुम्हारा मालिक बनने की बजाय
बन जायेगा हमदम और हमसाथी
पुरूष और नारी एक दूजे के पूरक हैं
ना तुम उससे ज्यादा ना वो तुमसे कम
जिस दिन समझाने में कामयाब हो जाओगी
उस दिन ऐ नारी तुम निश्चित जीत जाओगी
तुम्हारी जीत से धराशायी हो
पितृसत्तात्मकता कहीं कोने में सिसकेगी
तुम्हारी बनाई सुन्दर सी
नई दुनिया तुम्हें मिलेगी |