सुमिरन।
सुमिरन।
करता रहूँ बस अपने गुरु का ही सुमिरन,
भव-रोग कटत पल-पल छिन-छिन,
हृदय प्रफुल्लित हो धड़के हर क्षण,
मलिन हृदय बनता निर्मल निशदिन।
करता रहूँ बस अपने गुरु का ही समिरन।।
कर्म, उपासना,, ज्ञान यहाँ है मिलता,
"रामाश्रम" सरोवर में कमल है खिलता,
मल, विक्षेप, आवरण का पर्दा है हटता,
जो भी करता गुरु का चिंतन निशदिन।
करता रहूँ बस अपने गुरु का ही सुमिरन।।
जो गुरु नाम की दौलत को है पता,
करुणा मई वरदान का भागी है बनता,
रूहानी-दौलत की पूंजी वह है पाता,
भजले-भजले तू गुरु नाम को निशदिन।
करता रहूँ बस अपने गुरु का ही सुमिरन।।
शरणागत की लाज वह हैं रखते,
भव-सागर से पार वह हैं करते,
पल भर में सबके संकट हैं हरते,
सुनले "नीरज" भजन तू निशदिन।
करता रहूँ बस अपने गुरु का ही सुमिरन।।