"सुकून"
"सुकून"
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सोचती हूँ ,
पंछी बन उड़ जाऊं
दूर घने वन में जाऊं
पुराने बरगद संग बैठ
उससे बतियाऊं
कुछ सुकून पाऊं
सोचती हूँ
भाप बन उड जाऊं
बदली बन,
आसमान में
झूल जाऊं
कुछ सुकून पाऊं
सोचती हूँ
सूरज के संग,
क्षितिज पार जाऊं
चंद समय के लिए
दुनिया के झमेलों से
मुक्त हो जाऊं
कुछ सुकून पाऊं
हर दिन
अनाचार, अत्याचार
दुष्कर्मों के समाचार
हर तरफ
दुराव, छुपाव
रिश्तों में बिखराव,
कैसे सुकून पाऊं
मेहनताना पाने के लिए आज
मजदूरी के बाद भी
लूटी जा रही
बेटियों की लाज
करोना का संकट काल
असमर्थ भूख से बेहाल
गरीबों के राशन का
हो रहा व्यापार
मर चले अब
इंसानी एहसास
कैसे सुकून पाऊं।।