सुकून का एहसास
सुकून का एहसास
जब पथिक हो तुम सा,
समझ तुम्हें अपनी कमजोरी,
इस राह पर अकेला चल पड़ा।
वो आँचल तुम्हारा,
हर लू के थपेड़े से बचाने
चेहरे पर मेरे कूद पड़ा।
ना गर्मी, ना धूल,
न तपते रेगिस्तान के शूल।
बस एक शीतल एहसास में
मैं था मशगूल।
वो आँचल तुम्हारा
वो स्पर्श,
ऐसा था उसका सुकून।।

