सुखों की धूप
सुखों की धूप
ये अंधेरे में क्यूँ बैठी हो ?
जब भी देखो
कमरा बंद करके
इस अंधेरे में दुबकी
रहती हो
निकला कर घर से
यार, मेरा मन नहीं करता
न किसी से बात करने का
न बाहर कहीं जाने का
कई किसी ने कुछ पूछ
लिया तो फिर मैं क्या
जवाब दूँगी उन सब को
तू भी कैसी बात करती है
अब उस इंसान के लिए
तू घर से भी नहीं
निकलेगी क्या ?
जब उसने तेरी परवाह नहीं की
तो तू क्यूँ इतना सोच रही है ?
पर ये दुनियाँ तो
पूछती है न सवाल
कि शादी कब है ?
तो क्या जवाब दूँ
उन सब का
सच बोल और क्या
कि लड़के ने मना
कर दिया शादी करने से
अब इसमें तेरी तो
कोई गलती नहीं है न
मगर ये समाज तो लड़की
की ही गलती निकालता
है न हमेशा कि लड़की
में ही कोई कमी होगी
तभी रिश्ता तोड़ दिया
इसी समाज के भरोसे
बैठे रहेंगे तो खाना
भी नहीं खा पाएँगे
और इसी समाज ने तो
सीता को भी नहीं छोड़ा था
मेरी पता नहीं क्या
गलती थी जो मेरे
साथ ऐसा हुआ
जो इस अंधेरे में
कहीं घूम रही हूँ मैं
गलती तो तेरी नहीं थी
पर अब जरूर तू गलती
कर रही है ऐसे छिप कर
माना कि अभी
अंधेरे में है तू
पर अंधेरे के बाद ही तो
रौशनी आती है न हमेशा
ऐसे ही तेरी जिंदगी में भी
रौशनी जरूर आएगी
अगर अंधेरा आया है तो
क्योंकि हर एक गहरी रात
के बाद उम्मीद की रौशनी
हमेशा जरूर आती है
ऐसे ही दुःखों के बादल के बाद
सुखों की धूप जरूर आती है
हम्म, तुम ठीक कह रही हो
तो कब से शुरू करे बाहर जाना
कल से या आज से ?
अभी से।