सुबह का भूला
सुबह का भूला
गलतियाँ हुई तुम से बेशक आहिस्ता आहिस्ता इतनी,
तुम को खुद नहीं पता कैसे हो गई गलतियाँ इतनी ।
गुनाहगार की तरह तुम गुनाह करते रहे बेखौफ़ हो,
दूसरों के हक की खुशियाँ लूटते रहे गुनाह में इतनी।
माना की गलतियाँ करना जीवन का एक हिस्सा है,
गलतियों का अहसास तुम को होने लगा बात है इतनी ।
गलतियाँ इन्सान से ही होती हैं बस कहने से की बात नहीं,
इन्सान वही जो गलतियाँ से लेकर सीख आगे नव राह दिखाये इतनी।
सुबह का भूला शाम को घर लौटआये तो शुक्रिया अदा कीजिए,
सफल इन्सान वही है दुनियाँ में जो व्यवहार बदले बात बस इतनी ।।
