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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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सत्य का मूल

सत्य का मूल

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दिल मे ना फूल रखो

दिल मे ना शूल रखो

ये दुनिया बड़ी स्वार्थी है

तुम दिल को कूल रखो


कोई मारे झूठ का डंडा

तुम सत्य का मूल रखो

तुम्हें कोई राह न भटकाये

तुम अच्छाई का वसूल रखो


ये दुनिया एक समंदर है

सब के दिल यहां बंदर है

न समझते है दर्द किसी का

सब बन बैठे झूठे कलंदर है


दिल में इंसानों का खून रखो

तुम सत्य का मूल रखो

खाली मन शैतान का घर है

मन को तुम मशगूल रखो


सांप से ज़हरीला दुषित मन है

इसमें हज़ारों सांपो का फन है

तुम ऐसे दुर्जनो पर धूल रखो

तुम सत्य का मूल रखो


ये रंगीन आईने बडे लुभाते हैं

ये तुम्हे गलत राह ले जाते हैं

इन इंद्रधनुषों को फ़िजूल रखो

सच के आईने की धूल रखो


ईश्वर, मंदिर, मस्जिद में नहीं है

वो तुम्हारे दिल में छिपा है,

तुम दिल में उसे बस क़ुबूल रखो

तुम सत्य का मूल रखो।


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