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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

स्तुति

स्तुति

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प्राचीन ऋषियों की भूमि में, जहाँ नदियाँ भी मुक्त बहती थीं,

परतंत्र पड़ी थी धरा हमारी,

अत्याचार, आतताइयों का सहती थी।


तब कहीं जाकर अलख जगी,

रानी झांसी थी जो लड़ी,

पहाड़ों से लेकर समुद्र तक,

आत्माएँ वीर एक हो खड़ी।


पहना था कवच साहस का जिसने,

तलवार थी सत्य की भावना।


अविचल प्रतिमा थे मंगल पांडे, 

साथ दिया और किया सामना।


शांत साबरमती से लेकर बंगाल की लहरों ने की गर्जना,

बलिदानों ने कितने ही स्वतंत्रता को है बुना।


गाँधी के थे मौन मार्च,

थी उनकी प्रतिज्ञा दृढ़,

बोस की थीं जोशीली रैलियाँ,

नेहरू के शब्द थे सुदृढ

़।


थी पटेल की दृढ़ इच्छाशक्ति,

भारत की जो नींव है रखती।


भगत सिंह की महान वीरता, 

तिलक का स्वराज है बहता।


सोये मन थे जागे फिर, कुछ जेल बनी थीं फांसी जो,

खामोशी भी कहती है, जय जय रानी झांसी हो।


गूंजता प्रेम जिनके लिए आज भी है घर घर,

करें अनुसरण हम जिनका, वो हैं वीर सावरकर।


पंजाब के मैदानों से लेकर केरल के हरे तटों तक है, 

स्वतंत्रता की विरासत, हमारा है दायित्व, नहीं हक है। 


नहीं चित्रों में नहीं मूर्तियो में,

ना ही शब्दों में कहते हैं,

आज़ाद कराया, देश को जिनने,

वे दिलों में हमारे रहते हैं।


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