STORYMIRROR

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

4  

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

सत्ता में ग्रहण

सत्ता में ग्रहण

1 min
419

सूर्य ग्रहण हो या

चन्द्र ग्रहण

खंड ग्रास हो या

पूर्ण ग्रास

हम बंद कमरों

में ही करते

उबरने का इंतजार !


ग्रहणों का

दौर तो प्राकृतिक

नियमों से

बंधा है !

मौन होकर हम

निपटना

जानते हैं हम

यह क्षण

की व्यथा है !


पर ग्रहण सत्ता

में आये तो हम

बहार निकल कर

प्रतिरोध करते !

उसके विध्वंशक

प्रवृतियों को नाश

करने के लिए

संघर्ष करते !


सत्ता जो भ्रमित

हो जाती है !

तिलांजलि उसको

देनी पड़ती है !

पुराने वस्त्रों को

उतार फेंकते हैं !

नए वस्त्रों

को धारण करते हैं !


जिन्हें हम आशाओं

से राजतिलक

किया था !

उन पर हमने

भरोसा भी किया था !


अब उनके

वादों में ग्रहण लगने

लगा है !

दूर -दूर तक

उनके

कुकृत्यों का अँधेरा

छाने लगा है !


नक्षत्रों के ग्रहण

स्वतः ही दूर होते हैं !

पर सत्ता के लोभी

सबको निगलते हैं !

हमें इस ग्रास से

है मुक्त होना !

सभी को एक जुट

से साथ चलना !


हम हैं सजग प्रहरी

ना संविधान हम मिटने देंगे

राहू केतु के मंशाओं

को ना हम कभी बढ़ने देंगे !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract