सत्ता में ग्रहण
सत्ता में ग्रहण
सूर्य ग्रहण हो या
चन्द्र ग्रहण
खंड ग्रास हो या
पूर्ण ग्रास
हम बंद कमरों
में ही करते
उबरने का इंतजार !
ग्रहणों का
दौर तो प्राकृतिक
नियमों से
बंधा है !
मौन होकर हम
निपटना
जानते हैं हम
यह क्षण
की व्यथा है !
पर ग्रहण सत्ता
में आये तो हम
बहार निकल कर
प्रतिरोध करते !
उसके विध्वंशक
प्रवृतियों को नाश
करने के लिए
संघर्ष करते !
सत्ता जो भ्रमित
हो जाती है !
तिलांजलि उसको
देनी पड़ती है !
पुराने वस्त्रों को
उतार फेंकते हैं !
नए वस्त्रों
को धारण करते हैं !
जिन्हें हम आशाओं
से राजतिलक
किया था !
उन पर हमने
भरोसा भी किया था !
अब उनके
वादों में ग्रहण लगने
लगा है !
दूर -दूर तक
उनके
कुकृत्यों का अँधेरा
छाने लगा है !
नक्षत्रों के ग्रहण
स्वतः ही दूर होते हैं !
पर सत्ता के लोभी
सबको निगलते हैं !
हमें इस ग्रास से
है मुक्त होना !
सभी को एक जुट
से साथ चलना !
हम हैं सजग प्रहरी
ना संविधान हम मिटने देंगे
राहू केतु के मंशाओं
को ना हम कभी बढ़ने देंगे !
