स्त्री
स्त्री
वीर सम्राट ने शस्त्र त्यागे तुम्हारी हिम्मत के आगे
वीर राजकुमार ने भी शस्त्र उठाए तुम्हारे सौंदर्य के आगे
शूरवीर योद्धाओं ने भी शस्त्र उठाए तुम्हारे सम्मान के लिए
शीतल वायु में उठी फूल की तरह , तुम्हारी सुन्दर नाक के लिए
विद्वान तपस्वी राजा भी बने अधर्मी बहरूपिये तुम्हारे लिए
विद्वान तपस्वी राजा भी बन गए बुद्धि भ्रष्ट अधर्मी तुम्हारे लिए
ना चले कोई संसार की भाग दौड़ , ना भाए कोई मोह माया
तुम्हारे अस्तित्व के बिना
पार कर गए दिव्य भी , विशाल समुद्र , तुम्हारे हट के लिए
जलवा दी अपनी स्वर्ण नगरी , विद्वान तपस्वी राजा बने अधर्मी ने
तुम्हारी आस के लिए
पी गए विष का प्याला भी , देव , तुम्हारे मन मोहिनी रूप के सामने
दहल गए असुरों के दिल भी तुम्हारे शौर्य के सामने
तुम दिव्य हो , तुम सुन्दर हो , तुम शीतल हो,
तुम पवित्र हो, तुम माँ हो, तुम बहन हो , तुम संगिनी हो ,
तुम सपन हो, तुम कल्पना हो, तुम कविता हो ,
तुम सपन सुंदरी हो, तुम जोगन हो ,
तुम जल परी भी हो, तुम अप्सरा भी हो
तुम स्त्री हो
तुम यमराज को भी ललकार दो , अपने प्रेम के जीवन के लिए
तुमने अपनी तपस्या के आँचल से प्राप्त कर लिया देव का भी साथ
तुम
देव को भी थररा दो , अपने पैर के नीचे दबा दो
अपने क्रोध के आक्रोश में
तुम संगीत हो , प्रेम का गीत हो , प्रेमी की आस्था हो
तुम स्त्री हो
तुम विष का प्याला भी पी लो अपनी प्रेम की भक्ति में
तुम वंदना हो , तुम आराधना हो , तुम आस्था हो ,
तुम अर्चना हो, तुम आरती हो
तुम स्त्री हो
शरीर दूषित होता है , आत्मा नहीं ,
आत्मा सुन्दर है , आत्मा प्रेम है
तुम आत्मा हो , स्वच्छ हो , सुन्दर हो , प्रेम हो
तुम स्त्री हो
देव भी आत्म लीन हो गए , तुम्हारे तिलोत्तमा के रूप में
तुम सुन्दर हो , तुम सौंदर्य हो , तुम निखार हो,
तुम कोमल हो , तुम महक हो , तुम चांदनी हो
तुम स्त्री हो
तुम महारथी हो , तुम स्त्री हो
महर्षि तपस्वी की भी तपस्या की भंग तुमने
अपने दिव्या नृत्य से , अप्सरा के रूप में
तुम रंभा हो , तुम मेनका हो, तुम उर्वशी हो ,
तुम अप्सरा हो , तुम मृगनयनी हो
तुम स्त्री हो
तुम अग्नि का भी मन मोह लो , उसका आँचल ओढ़ के
तुम पवित्र हो
तुम स्त्री हो
तुम दिव्य हो
तुम स्त्री हो!