स्त्री-सहज भी, कठोर भी
स्त्री-सहज भी, कठोर भी
सरल-सुगम-सहज-सहल
सीमित है और विस्तृत भी
हर दशा में रहती पुलकित
निस्वार्थ-निश्चल धरा जैसी
निरपक्षता भरी भावों में
अप्रतिम सेवा धर्म उसका
त्याग समर्पण की मूरत
है वह निरंतर बहती धारा
ममतामयी अंतरात्मा उसकी
अमृत बूँदें बरसाती
कठोर शैली में भी सर्वदा
कमल भाँति खिलती रहती
असंख्य कष्टों को छुपाना
कला उसकी है अद्भुत
योद्धा बनकर प्रतिहार करती
रूप उसका ऐसा प्रभूत
गृहस्थ, समाज, रिश्ते निभाती
सर्वस्व अपना न्योछावर करती
निस्सहाय मत समझो उसको
समझकर यह, है मात्र एक स्त्री
प्यार, सत्कार, आदर, सम्मान
है उसका सर्व अधिकार
सृष्टि का वह अखण्ड खंड
मत करो उसका तिरस्कार
परिचय उसका हर युग से जानो
ए पुरुष वह कोई अबला नहीं
उसके मनोबल को न ललकारो
वह है अम्बा, चंडी, और महाकाली......