स्त्री की स्वाधीनता
स्त्री की स्वाधीनता
किसी भी बात पर उसको नहीं है स्वाधीनता
जेलनी पड़ती है उसको कई बार अनाधीनता।
ऐसे जीने से वो तंग आ चुकी है
जीवन में उसको भी चाहिए स्वतंत्रता।
बड़े ही गंदे नज़रिए से देखता है समाज उसे
समाज के नजरिए में लानी पड़ेगी नवीनता।
एक मर्द से भी ज्यादा ताकतवर है वो
उसकी सहनशक्ति की नहीं है कोई असीमता।
हमें एक ऐसा समाज निर्माण करना है
जिसमें महिलाओं की हो मात्र कुलीनता।
हर एक स्त्री समाज पर गर्व करे
और ना रहे कोई भी उदासीनता।
स्त्री इस देश का स्वाभीमान है
लेकिन उसको झेलनी पड़ती है कठिनता।
तो क्यों ना हम ये करके दिखाए
और लाए समाज में एक नई जागरूकता।
