स्त्री की नियति -आँगन की महकती तुलसी
स्त्री की नियति -आँगन की महकती तुलसी
घर में तुलसी लगाकर
तुमने कहा था
यह तुझसी है
मैंने भी मान लिया था
क्योंकि आँगन से अलग नहीं थी
मेरी भी हस्ती
जी रही थी मैं भी
दिए हुए पानी पर आश्रित
करती आ रही थी
औरत होने का प्रायश्चित
मैं जानती थी
की प्यार पाना नहीं
पूजा पाना ही थी
मेरी नियति ........मेरी नियति