स्त्री हूँ, गर्वित हूँ
स्त्री हूँ, गर्वित हूँ


अभिव्यक्त मौन की परिभाषा मैं
अतृप्त स्वप्न सी अभिलाषा मैं
मैं धरा सी, लिए जीवन का अंकुर
मैं अम्बर सी विस्तृत निरंतर
मैं पंछी सी उड़ने को आतुर
मैं पथ सी बढ़ती अग्रसर
सुषुप्त चिंगारी सी, रखती भीतर दावानल
मैं स्त्री, संवेदनाओ का उदगम
वात्सल्य का मूर्त रूप हूँ मैं
प्रतिज्ञा का दृढ़ स्वरुप हूँ मैं
अनंत, अमिट, अद्भुत अनुभव सी
मैंं जीवन हूँ, जननी जीवन की।