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Tulika Das

Inspirational

4  

Tulika Das

Inspirational

स्त्री और उसके सवाल

स्त्री और उसके सवाल

2 mins
406


एक सवाल , सौ सवाल

जाने कितने सवाल

आ खड़े होते हैं मेरी राहों में

सोचती है स्त्री

क्या वजूद है मेरा सवालों के घेरे में ?


आज सोचती हूं मैं

पूछ लूं मैं भी कुछ सवाल इन सवालों से

एक प्रश्न चिन्ह मैं भी तो लगा दूं इन सवालों पे ।


ऐसे नहीं , ऐसे चलो

सर जरा झुका कर रखो

देखो संभालो आंचल अपना

लग ना जाए कोई दाग बुरा ।

इतनी जोर से ना हंसो

यूं बातें करते ना चलो

ये नहीं ,वो रंग पहनो

ये रंग अब कुछ जचता नहीं

तुम्हारे लिए ये रंग नही

कपड़े यह कुछ अच्छे नहीं

बदल गई दुनिया

और वक्त की चाल कुछ ठीक नहीं ।

ओढ़ कर चिंताओं की चादर

सवाल आ खड़े होते हैं

रोकने लगते हैं फिर राह मेरी

पर आज है सवालों की बारी मेरी ।


हाथ थाम इन सवालो को

मैं कर देती हूं परे।

पूछती हूं मैं आज इनसे

क्यों हो मेरी राहों में खड़े ?

क्यों मेरे आने जाने का तो हिसाब रखते हो ?

कहां जाती हूं मैं?

किस से मिलती हूं मैं?

क्यों मुझसे पूछते हो?

कब आना है, कब जाना है ?

सलाह क्या मैंने है मांगी?

क्यों बिन मांगे ही सलाह

तुम बस देते रहते हो।

शाम की विदा लेती धूप हो

या हो रात की चादर काली

मेरे कदमों के आगे लकीरें ये किसने खींच डाली?

मिटा दूं इन लकीरों को जो मैं

तुम फिर आ खड़े होते हो

नयी अजीब बंदिशे लेकर

कभी अनजाना डर मुझ में जगा कर

तुम क्या कहना चाहते हो ?


क्या इंसानो की इस दुनिया में

मुझे भी हक एक इंसान सा हासिल नहीं ।

क्यों मैं खुल कर सांस ले सकती नहीं,

क्यों अंधेरे के साथ मैं सफर कर सकती नहीं,

क्यों रोशनी की पाबंदी सिर्फ मुझ पर है ,

क्यों ?

क्यों इंसानों की इस दुनिया में

आधी आबादी को आजादी अब भी हासिल नहीं ।


अस्तित्व इंसान का मुझ से ही है

और सवाल मेरे ही अस्तित्व पर तुम लगा देते हो ?

कहते हो मुझसे - बाहर की दुनिया ये ठीक नही,

तो ठीक दुनिया को करो ना,

मुझसे क्यों कहते हो?

क्या वो भी है गलती मेरी ?



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