सर्वस्व
सर्वस्व
हे..नारी
तू धरा का सर्वस्व
कूच करने का माध्यम
विस्तृत शरीर का प्रखर वेग
निरुत्तर मन का प्रत्युत्तर
अशक्त में सशक्त मार्ग
अस्थिरता में चित्त मन
उग्र संकट में सटीक तोड़
अल्प विपदा में धीर, गंभीर
सुषुप्त नयन में स्वच्छ जल
क्षुब्ध साँस में प्राण वायु
रूक्ष स्पंदन में शुद्ध प्रेम
रिक्त हृदय में पूर्ण स्थान
अनन्य व्यथा में तीव्र दवा
संदेह में निस्संदेह प्रभाव
क्षणिक वेग में शांत छांव
वात्सल्य भाव में मीठा शहद
कटु शब्दों में मधुुर वाणी
अटूट स्नेह में निर्मल जल!