सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना
है हंस पर आरूढ़ माता, श्वेत वस्त्रों में सजी।
वीणा रखी है कर तिहारे, दिव्य सी सरगम बजी।
मस्तक मुकुट चमके सुशोभित, हार पुष्पों से बना।
फल फ़ूल अर्पण है चरण में, हम करें आराधना।
संगीत का आधार हो माँ, हर कला का श्रोत हो।
जग में प्रकाशित हो रही जो, वेद की वह ज्योत हो।
वरदायिनी पद्मासिनि माँ, अब यही अभियान हो।
हम सब चलें सत्मार्ग पर अब, ना हमें अभिमान हो।
देवी यही है कामना सब, लोग मिल आगे बढ़ें।
अपने सभी अंतर भुलाकर, ज्ञान की सीढ़ी चढ़ें।।
माँ शारदे ये वर हमें दे, बुद्धि का विस्तार हो।
अपनी इसी पावन धरा पे, धर्म का संचार हो।।
